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Madhavi Sharma [Aparajita]

Tragedy

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Madhavi Sharma [Aparajita]

Tragedy

"डर"

"डर"

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मुझे डर लगता है,

इंसानी खाल में छुपे हुए भेड़ियों से,

उनके वहशीपन और हैवानियत से,

उनके हाथों उस मीठी-मीठी चॉकलेट से,

मुझे डर लगता है,


मुझे डर लगता है,

देश के उन गद्दारों से,

जो चंद सिक्कों की खातिर,

सौदा करते हैं, अपनी मातृभूमि का,

सफेदपोश उन व्यापारियों से,

मुझे डर लगता है


मुझे डर लगता है उन रिश्तों से,

जिनके मुँह में राम, बगल में छुरी है,

जो करते हैं वार, पीठ के पीछे से,

भोलेपन की आड़ लिए हुए, विश्वासघातियों से,

मुझे डर लगता है,


मुझे डर लगता है ऐसे बेटों से,

जो स्वार्थवश छोड़ देते हैं,

अपने माता पिता को बुढ़ापे में

तिल तिल कर मरने के लिए

ऐसे बेटों से मुझे डर लगता है


मुझे डर लगता है "कान्हा",,,,,

भूलकर भी मुझसे कोई भूल ना हो जाए,

जाने अनजाने किसी का दिल न टूट जाए,

अंत समय हरि नाम, न मुख से छूट जाए,

स्वीकारती हूँ मेरे कान्हा, डर लगता है,

हाँ मुझे भी डर लगता है,,,,,


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