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Anjali Kemla

Abstract

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Anjali Kemla

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डर भरा अधूरा सपना

डर भरा अधूरा सपना

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378

समय 2 बजे, 

घर अपना नहीं, किराए का कमरा 

घरवाले नहीं, रूममेट 

और मेरी उम्र मात्र 20 साल, 

 

थोड़ी सी बड़ी मैं उम्र से थी,

पर हरकते नादान,

शांत ज़ुबान,

और उस रात के सपने का शमशान


उस रात मेरी नींद बहुत गहरी थी 

वो रात मुझसे कुछ कह रही थी 

उस रात बात उसकी टालकर

मैंने नींद को पकड़ लिया 

और थोड़ी ही देर में एक

सपने ने मुझे खुद में जकड़ लिया।


रात ढाई बजे के करीब

कुछ आवाज़ मुझे सुनाई दी, 

और नींदों ही नींदों में अजीब सी

जगह मुझे दिखाई दी 

कुछ था नहीं वहां बस राख,

मिट्टी, और बहुत सारी लकड़ी थी 

मैं पहली बार इस तरह

किसी सपने से जकड़ी थी।

 

मैं थम गई उस जगह पर

और वो घड़ी भी वहां रुक गई 

मैं कुछ समझ पाने की

कोशिश ही कर रही थी कि मुझे

कुछ लोगों की आवाज़ आने लगी,


जैसे कोई भीड़ चिल्ला रही हो

और सिर्फ एक ही लाइन सुनाई देने लगी, 

*राम नाम सत्य है* 

और धीरे धीरे से वो आवाज़

मेरे पास आने लगी।

 

 कुछ देर रुकने के बाद

कुछ लोगों की भीड़ 

और उनके कंधों पर एक जनाज़ा

देख कर रूह कंपकंपाने लगी,

जैसे मेरी जान मेरे शरीर से अलग छुट गई 

और उस जनाजे को देख मेरी आंखों से

आंसू टपके और मैं टूट गई।


अचानक से कमरे में रखे

मटके का गिलास गिरा, 

नींद टूटी, आंख खुली, और मेरी सांसें

ऊपर नीचे होने लगी जैसे मैं

कहीं से भाग कर आई हूं।


उस पूरी रात मुझे नींद नहीं आई

और डर ने मुझमें जगह बनाई 

और उस सपने में वो जनाजा किसका था, 

मैं कभी समझ नहीं पाई।


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