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Amit Kumar

Abstract

3  

Amit Kumar

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दास्तां

दास्तां

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न तुमने कही 

न दिल ने सुनी 

फिर भी कुछ - कुछ 

अजब - ग़ज़ब तेरी मेरी 


यह दास्तां जो रह गई अधूरी 

दास्तां भी किसी की पूरी हुई है 

यह ख़ुश्क़ शामें हमेशां से 

इसी तरह उलझी हुई है 


कोई बेबाक़ पन इनको भी 

सीखा दे बेबाक़ियाँ वक़्त की।


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