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bhagawati vyas

Abstract

4.7  

bhagawati vyas

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दानव

दानव

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दानव कभी असुर कहलाये,

जाति अब यह लुप्त हुई !

मानव में दानव अब बसते,

बात नई यह नहीं हुई !!


भले बुरे का ज्ञान नहीं है,

अंधकार के गर्त में !

सच से रहता सदा परे जो,

रहे झूँठ की पर्त में !

मद में दानव चूर रहे है,

शक की घूमे तेज सुई !!


पशुता के हैं भाव पनपते,

क्रूर रहे निर्लज्ज भी !

भय, आतंक करे पैदा जो,

हथियारों से सज्ज भी !

बार बार उठता गिरता है,

धन, मान हैं गुमे दुई !!


तन मन आहत जब तब होता,

है आचरण वही हठी !

नाम यही है हिस्से आया,

कहते लोग उसे शठी !

दुष्कर्मों से बाज न आए,

खोदे अँधियारी कुई !!


कर्म फलित हैं होते आये,

उनकी बस पहचान हो !

भले बुरे का मर्म समझ लें,

हिरदे बसता ज्ञान हो !

जीवन पींजें हम कपास सा,

बनते भार रहित रुई !


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