दानव
दानव
दानव कभी असुर कहलाये,
जाति अब यह लुप्त हुई !
मानव में दानव अब बसते,
बात नई यह नहीं हुई !!
भले बुरे का ज्ञान नहीं है,
अंधकार के गर्त में !
सच से रहता सदा परे जो,
रहे झूँठ की पर्त में !
मद में दानव चूर रहे है,
शक की घूमे तेज सुई !!
पशुता के हैं भाव पनपते,
क्रूर रहे निर्लज्ज भी !
भय, आतंक करे पैदा जो,
हथियारों से सज्ज भी !
बार बार उठता गिरता है,
धन, मान हैं गुमे दुई !!
तन मन आहत जब तब होता,
है आचरण वही हठी !
नाम यही है हिस्से आया,
कहते लोग उसे शठी !
दुष्कर्मों से बाज न आए,
खोदे अँधियारी कुई !!
कर्म फलित हैं होते आये,
उनकी बस पहचान हो !
भले बुरे का मर्म समझ लें,
हिरदे बसता ज्ञान हो !
जीवन पींजें हम कपास सा,
बनते भार रहित रुई !