दाम्पत्य जीवन में प्रवेश
दाम्पत्य जीवन में प्रवेश
रोक लो अब स्याही को भी,
रीति रिवाज़ निभाने का वक्त है।
होठों को हर हाल में वृताकार बनाए रखना,
नये जीवन का एक और सच है।
मुमकिन बहुत कुछ था,
झोली में वो घेर न था।
कोशिशें थोड़ी कम रहीं,
हमने सपने में सपना देखा था।
और बहुत कुछ हो भीतर,
भीतर रखना ही बेहतर।
एक एक कर आगे बढ़ेंगे,
समझौतों की पटरियों पर।
फिर बीच बीच में तालियां सुनाई देंगी,
तुम्हारी उन्नति पर पुरस्कारों की महफिल सजेगी।
देख उस चकाचौंध को,
आंखों की झुर्रियाँ कुछ तो कम होंगी।
होठों पे जो मुस्कान होगी,
सौ आने असली होगी।
रीति रिवाजों के आगे भी,
एक छोटा सा खुद का कोना होगा।
तहज़ीबों से आगे भी,
सच्ची खुशियों का जहाँ होगा।
कुछ असमंजस में,
समय की धार में बहती युवती।।
