दादी अम्मा
दादी अम्मा
अब न दादी अम्मा रहीं और ना दादी अम्मा के किस्से
अब तो तिरस्कार, अपमान ही आया है उसके हिस्से
किसी वृद्धाश्रम की शोभा बढ़ाती है वह
जिन्हें बद्दुआ देनी चाहिए उन्हें दुआ दे जाती है वह
अप्रचलित सामान की तरह वह भी हो गई है अप्रचलित
नये जमाने की चकाचौंध से अपनों द्वारा विस्मृत
दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं
बेटे बहू के उलाहने , ताने सहने को मजबूर हैं
अपने ही घर में नौकरों की तरह रहती हैं
अपने ही खून के द्वारा अपमान सहती हैं
बच्चे पालने नहीं आते उसे (बहू की नजर में)
नये चलन, नये रिवाज नहीं भाते उसे (बेटे की नजर में)
वह संस्कारों की बात करती है
आज की युवा पीढी तो अपनी मरजी की करती है
रात में बच्चों को बाहर घूमने देना उसे अच्छा नहीं लगता
मगर उसकी ये सब बात तो अब लैक्चर जैसा लगता
छोटे और तंग कपड़ो को उसने कभी पसंद नहीं किया
इसी मुद्दे पर आज उसकी पोती ने उसे डांट दिया
दकियानूसी, रूढिवादी, पुरातन पंथी तक कह दिया
वो बेचारी क्या करे ? सारा अपमान चुपचाप सह लिया
कहानी किस्सों के लिए यू ट्यूब है ना सबके पास
फिर जरूरत क्या है किसी दादी अम्मा की खास
उसे केवल सम्मान चाहिए बाकी कुछ नहीं
दादी आम्माओ के लिए आजकल के दिन अब शुभ नहीं।