" दादा -दादी, नाना-नानी "
" दादा -दादी, नाना-नानी "
ये दुनिया दादा - दादी, नाना - नानी
के इर्द - गिर्द घूमती है,
दादा - दादी, नाना - नानी की
कहानियां पुराने ज़माने से चली आ रही हैं,
उनके घरेलू नुस्खे विज्ञान को मात दे रहे हैं,
बच्चों का पहला स्कूल है दादा - दादी, नाना - नानी,
परम्परा, संस्कार का खज़ाना हैं ये,
जिंदगी की कहानी इन्हीं से शुरू होकर
इन्हीं पर खत्म होती है,
इनकी थाली में पलते हैं प्यार के बच्चों के निवाले।
हाँ पर आजकल एकल परिवार होने के कारण,
लुप्त होती जा रही है दादा - दादी, नाना - नानी की कहानियां,
और इसके कारण हम खोते जा रहे हैं
अपने संस्कार भी,
अगर हम देश, समाज का विकास चाहते हैं तो,
संयुक्त परिवार को फिर से अपनाना होगा,
अपने पुराने परम्पराओं को दादा -दादी,
नाना - नानी के रूप में अपनाना होगा।