चुभन
चुभन
देते हैं दर्द जब काँटो सी चुभन कभी,
उन काँटों को हटाऊँ कैसे।
फूल भी तो चाहिए खुशी के मौके पर,
बिन काँटे उन्हें खिलाऊँ कैसे।
जिन्दगी में आती रहती है कड़वाहट भी अक्सर,
ख्वाब आँखों में हर पल मीठे सजाऊँ कैसे।
दुख दर्द जब अपने ही देते हों बैगाने बनकर जब कभी,
अश्क आँखों के फिर छिपाऊँ कैसे।
नफरतें, शिकवे पाल कर रखते हों
जब गलत फहमियाों के कुछ लोग,
भेदभाव हटा कर उनसे प्रेम बढ़ाऊँ कैसे।
जख्म भी अपनों के लगते हैं,
जैसे प्यार के तोहफे में मिले हुए,
उन से हटाकर पर्दा सभी को दिखाऊँ कैसे।
सोचते हैं, हँसता हुआ चेहरा किसी का
सुखी है हर पल, दुख दर्द अपना सभी को खोल के बताऊँ कैसे।
दुख दर्द का असर चेहरा पढ़ कर बता सकती है माँ
ही सुदर्शन, इलाज क्या है, माँ जैसा हाकिम ढूंढ कर लाऊँ कैसे।