चोरों की गली
चोरों की गली
एक दिन गलती से ही सही,
पर पहुँची मैं चोरों की गली,
वहाँ जाकर बहुत कुछ देखने को मिला,
क्योंकि वह थी बड़े लोगो की बस्ती।
डर भी उतना ही लग रहा था,
वह न थी मेरी जैसी,
वहाँ जाकर यह तो देखना तज की,
हैं क्या इन लोगो की कलाकृति।
काश चलते-चलते देख लेती,
कहा पहुँच गई,
यह सब थी,
मेरी गलती।
काश किसी के साथ,
आ जाती,
हिम्मत तो होती,
परिवार की।
यहाँ लोगो के पास,
बहुत समान है,
लेकिन बुद्धि की तो,
दात देनी पड़ेगी यार।
चोरी करने के बाद,
नहीं होता इन्हें अफसोस,
क्योंकि यह है इनका,
रोज का काम।
मैन से चोरी करते हो,
कभी मन से दूसरा काम कर लिया होता,
फिर न ही पुलिस का डर,
और न ही खेलनी पड़ती
पकड़म -पकड़ाई हरदम।
कैसे सोते होंगे,
खुशी की नींद,
कैसे जीते होंगे,
यह हर दिन।
मेरे मन में तो,
यह ख्याल आता हैं,
समझ के कोई जासूस,
अगर इन्होंने मुझे मार दिया तो।
कोई अपने ही लोगों मे,
चोरी कर रहा हैं,
कोई शातिर दिमाग वाला,
उन्हें देख रहा हैं।
काश ले आती मे फ़ोन,
कैप्चर कर लेती इनके,
दो -दो मोमेंट और।
इनको तो कोई सम्मान,
भी नहीं देता,
तो भी चोरी करनी है,
यह निशचयकर लेते है।
पता नहीं कौनसी मिट्टी के बने है,
इतने पत्थर दिल तो,
हमारी टीचर और मम्मी,
भी नहींं है।
इतनी तो गंदगी हैं,
इतनी तो बास,
किसका रहने का मन करेगा,
तो भी यह रहे लेते हैं यहाँ बिनदास।
अभी भी खत्म नहीं हुई,
इनकी यह बस्ती,
पर मुझे आ रही,
है सुस्ती।
पर यहाँ कैसे सोजाओ,
गंदगी की जगह मे,
अपने घर मैं यहाँ,
कैसे बनाऊँ।
है यह कोई सजा,
या परिश्रम,
क्योंकि इतना तो,
परेशान नहीं हुई मै आजतक।
क्या खाते होंगे,
क्या पीते होंगे,
कही फिर पैसा तो नहीं,
जिससे यह जी लेते होंगे।
क्या चोरो के बच्चे,
चोर होते होंगे,
क्या वह भी नहींं,
पढ़-लिखकर हुशियार होते होंगे।
भगवान आप थोड़ी दया करो,
चोरो को भी जीने,
कि वजह देने का,
अब उनके लिए,
सिर्फ पैसा न हो जरूरी,
ऐसी उनपर भी,
कृपा करना।
अब आखिरकार मैं,
अपने लोगों की,
बस्ती मैं आई,
जिससे मुझे भी खुशी मिली भाई।