छंद- कुंडलियाँ
छंद- कुंडलियाँ
बोले गुरु यूँ शिष्य से,
छेड़ो कोई राग।
भला करेंगे हरि स्वयं
जो हो सच्ची लाग।
जो हो सच्ची लाग,
बजेगी धुन फिर न्यारी।
झूमेगा ब्रह्मांड,
लखेगी दुनिया सारी।
इक इक करके आज,
राज़ फिर सारे खोले
गुरु बिन कैसा ज्ञान,
शिष्य फिर मिल के बोले।।