*हो न लोकतंत्र की हार...
*हो न लोकतंत्र की हार...
उठो, चलो, बढ़ते रहो, गति न हो कभी
मंद नहीं असंभव काज फिर, कहें विवेकानंद
उसी दिशा में ले चले, नव गति, नव आरंभ
देश-प्रेम की भावना, नहीं बूँद भर दंभ
*हो न लोकतंत्र की हार, साथी! नहीं बिकना इस बार*
लार टपकती पाक की,नहीं देंगे कश्मीर
बंधे कहाँ हैं हाथ अब, चमक रही शमशीर
छेड़ा अब की बार तो, सेना पर नहीं
रोक देंगे उसे जवाब फिर, घर में घुस कर ठोक
*हो न लोकतंत्र की हार, साथी! नहीं बिकना इस बार*
घर- घर रौशन कर दिया, घर-घर दे दी गैस
लाठी वाला ढूँढता , कहाँ गयी अब भैंस
स्वाभिमान रोपित किया, दिया 'आम' आवास
बीमा, खाता क्या नहीं, अब है उनके पास
*हो न लोकतंत्र की हार, साथी! नहीं बिकना इस बार*
शोषित, वंचित को मिले, आरक्षण का साथ
धर्म- जाति का वोट अब, नहीं किसी के 'हाथ'
मुश्किल अब कुछ भी नहीं, है मुमकिन हर बात
चौकस चौकीदार तो, डर भागेगी रात
*हो न लोकतंत्र की हार, साथी! नहीं बिकना इस बार*