चमकते सितारे
चमकते सितारे
चमकते सितारे रात के आंचल में।
यहां से वहां तक खेलते हैं गगन में।
कुछ चंदा से छुपते ,कुछ चंदा के पास है आते।
यूं ही रात भर हंसते मुस्कुराते।
प्रेमियों को गिनती गिनना सिखाते।
दुष्टों को दिन में भी है सितारे नजर आते।
यह चमकते सितारे आकाश में चहुं ओर फैले हुए हैं।
मानो अपने ही जन है जो दुनिया से चले गए हैं।
आसमान में जाकर जो तारे बन गए हैं।
यूं ही देखकर सोचता घूमता हूं।
रातों को जब भी गगन की और देखता हूं।
चंद्रमा में मां का मुख,
और तारों का मां का आंचल
फैला हुआ देखता हूं।
यूं ही छत से ऊपर टिकटिकी लगाते लगाते।
जाने कब मैं मां की आगोश में जाकर फिर सोता हूं।
सबसे चमकदार सितारा मेरी मां ही बनी होगी।
नजर उसकी मुझ पर से हटती ना होगी।
यकीन है मुझको सच कहता हूं मैं।
ध्रुव तारा है जो, वही मेरी मां होगी।
परमात्मा के सहारे उसने छोड़ा है मुझको।
शिवजी के माथे पर सजा है चंद्रमा।
उनसे ही कह कर वह मेरे सपने पूरे करवाती ही होगी।
आज है शिवरात्रि सोया नहीं मैं।
मां आज तो तू भी शिव दरबार में जाती ही होगी।