चलते रहना ही जीवन है
चलते रहना ही जीवन है
चलते रहना ही जीवन है,सजग चेतन मन रहना तुम।
निष्क्रियता से श्रापित हो,जड़ता का आवाहन् मत करना तुम।।
प्रतिद्वंदी बन द्रुत गति से इतना भी मत भागो तुम।
अर्धमार्ग में बेदम होकर,स्व आत्मविश्वास ही हर लो तुम।।
चौटिल होकर पथ पर चाहे मिलें सौ-सौ घाव तुम्हें।
राह खड़े अरिदलों से कभी भयभीत ना होना तुम।।
उच्च आंकाक्षाओं से निश्चित ही ह्रदय तल संजोना तुम।
लोलुपतावश लघुमार्ग को अपना पथ कभी न चयनित करना तुम।।
पुष्प मिलें या लक्ष् कंटक पथ पर,खुल कर स्वागत करना तुम।
हर बाधाओं से मुकाबला करना सीखना और सिखाना तुम।।
संयमित रह राही सजग दृष्टि से सदा पथ पर अग्रसर रहना तुम।
धरा से लेना धीरज,पर्वत शिखर-सा ऊँचा उठना तुम।।
देख सागर की ऊँची लहरें,कर्म से उच्च बनना तुम।
नदियों -सी शीतलता ले,नित शांत भाव से चलते रहना तुम।।
कुशल धावक बन सागर के तट पर,लहरों से लड़ना सीखना तुम।
वन,उपवन,फल,फूलों से परहित में जीना सीखना तुम।।
लक्ष्य भेदती तुम्हारी दृष्टि जैसे,वैसे सदा लक्ष्य को अपने पाना तुम।
चाहे हो क्रूर काल प्रतिकूल कितना,साहस रख काल को अनुकूल बनाना तुम।।
दुष्कृत्यों से परिवर्तित हों चाहे कितने मौसम,सुकृत्यों से सुगंधित कर पर्यावरण बचाना तुम।
ओढ़ गहन गम्भीरता सागर-सी,जग में मानवता सदा सुरक्षित रखना तुम।।
पथ में मिले जो पथिक अंकिचन,सबको सुराह सुझाना तुम।
चलते रहना ही जीवन है,थक कर ह्रदय अवसाद न भरना तुम।।