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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy Others

4.5  

संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy Others

चलो इस बारिश में बैठ चाय पीते हैं

चलो इस बारिश में बैठ चाय पीते हैं

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चलो इस बारिश में बैठ चाय पीते हैं

खामोश लम्हों में भीगते कुछ गपशप करते हैं,

मुस्कराहट संग आंखों में आँखें डाले

चलो धड़कनों के राग को हम फिर  सुनते हैं।



तेरे मेरे आँखों से बहते अश्कों के शोर में

चलो टपकती बूंदों के टप टप को  सुनते हैं ,

कुछ अधूरी रह गई कहानियाँ के बीच हम

बैठ पास कुछ अधूरे अफसानों को चुनते हैं।



चलो बारिश के मौसम में कहीं ठहर जाए

ना चाय खत्म हो ना कहीं तू दूर जाए,

फिर कुछ पल जिए हम पुरानी मोहब्बत के लिए 

आंखों में देखते रहे हम फिर ना होश में आएं।



चलो चलते हैं उन बीते लम्हों में फिर से 

जहां दरख़्तों में नाम लिखा था तेरा मेरा,

तेरी हंसी पे सिमट जाती थी सारी फ़िजा

तेरी आंखों में कब से था एक जमाना ठहरा।


याद है वो गलियां जहां गूंजते थे प्यार के पैगाम

वो बाहों में भरना तुम्हें मेरा सुबह शाम,

तेरी बातों में छुपा था सुकून का फलसफा

तुझे देख के जागते थे मेरे ये अरमान।


तूने जो चूड़ियां खनका कर कहा था ध्यान रखना

वो खनक आज भी गूंजती है बनके एक सपना,

चाय के प्याले थे मगर दिल डूब रहा था 

वो झोंका हवा का मुझसे जाने कुछ कह रहा था।


आज फिर वही बूंदें वैसा ही समां है

तू पास नहीं और सारा जहां अधूरा है,

चलो इस बारिश में उन यादों को जिलाते हैं 

भीगते लम्हों में कुछ अधूरे गीत गुनगुनातें हैं।


तेरे बिना भी तेरे साथ का एहसास है 

हर घूंट चाय में तेरा प्यार खास है,

चलो उन गलियों से बनके बादल फिर गुजरते हैं,

भीगते लम्हों में दिल खोल के बरसते हैं।


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