चल कर ले दरिया पार
चल कर ले दरिया पार
है हरसू छैया प्रीत की लबरेज़ भरा घट छलक रहा,
इंतज़ार किस बात का माशूक इकरार में ज़रा तू नैंन उठा..
"न तुम दाता न मैं याचक
मोहब्बत में न मांगना न देना होता है"
बहती है एक ही मंदाकिनी दो उरों की धार से
जिसमें बहते अँजुरी भर पीनी है इश्क की मदमस्त आग..
ललक नहीं, न अधिरता प्रीत की मखमली परवाज़ लिए
हमें चलना है ताउम्र साथ..
सुध ले ले तू मेरी मैं तेरा छिनूँ चैनों करार
एक दूजे के भीतर रहकर जी ले ज़िस्त हज़ार..
जुदा नहीं मुझसे तू नखशिख मौजूद रग-रग जान,
नदिया मैं तू है सागर साजन संगम रच ले आज..
वेग है तुम्हारे चुम्बन में मेरा आलिंगन अनराधार
मिलती है चार आँखें जहाँ वहाँ रचता है स्वर्ग का द्वार..
वादे न इरादे न यकीन का यलगार,
मानें तू मुझे खुदा अपना तू मेरा तारनहार
सिद्ध करें चलो समर्पण अपना उतरे दरिया पार।