चक्रव्यूह
चक्रव्यूह
हर मां-बाप सोचता है
जीवन के जिन
कठिन रास्तों से,
वे गुज़रे,
उनके बच्चे न गुज़रे।
जिन आंधी तूफानों को
उन्होंने झेला,
बच्चे न झेलें।
जिस संघर्ष तथा तनाव को
उन्होंने सहा
बच्चे न सहें।
अमीर हो या गरीब
हर मां-बाप अपनी हैसियत अनुसार ही नहीं
उससे भी कहीं अधिक
बच्चों को सुविधा देना चाहता है
अपना पेट काट कर
अपनी इच्छाएं मार कर।
मैं यह नहीं कह रही
ऐसा वे न करें
मैं केवल इतना कहना चाहती हूँ
हर जीवन का चक्रव्यूह अलग है,
जिसे व्यक्ति ने
स्वयं ही तोड़ना है,
टूट गया तो ठीक
नहीं तो अभिमन्यु की तरह
धराशायी तो होना ही है।