चक्रवात के चक्कर में त्राहि-त्राहि है मन
चक्रवात के चक्कर में त्राहि-त्राहि है मन
चक्रवात के चक्कर में
त्राहि-त्राहि है मन
घिसा पीटा हुआ
लग रहा है नश्वर जीवन।।
क्या करे क्या ना करें
समझ ना आए हे भगवान
मार्ग प्रशस्त करो
दया निधि दया धन।।
हम है अज्ञानी
अज्ञानता में डूबे हैं जन मन
कुछ करो प्रभु
अशुद्ध से शुद्ध हो मेरे मन।।
और ना करें हम
प्रकृति को कृति सेन निर्धन
मनोहर मनमोहक दृश्य हो
खुशहाली से खिल उठे मेरे जीवन।।