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Dr Gopal Chopra

Tragedy

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Dr Gopal Chopra

Tragedy

चीख़

चीख़

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एक चीख़ सी गूंजती है,

वादियों में,

गांव के मोहल्लों में,

शहरों की सड़कों में,

देशों में,

ब्रह्माण्ड में,

उस चीख़ को सुनकर उसके पास जाया जा सकता है,

उसका हाथ पकड़कर उसे बचाया जा सकता है,

उस चीख़ को खुशी के मधुर राग में तब्दील किया जा सकता है,

मगर,

हम पड़े हैं थके हुए अपने बेडरूम के आरामदायक बिस्तर पर, हम एयर कंडीशनर की स्पीड बढ़ाकर जगे हुए सो रहे हैं,

हमें इतनी फुर्सत नहीं,

हमारा इतना मन नहीं,

कि हम उठ खड़े हों,

और भागें उस हर एक छोटी से छोटी चीख की ओर,

हमें तो सुबह जिम जाना है,

हमें चीख़ों की आदत सी है अब।


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