औरतें रेल की पटरियां नहीं।
औरतें रेल की पटरियां नहीं।
रेल की पटरियां अपनी
जिम्मेदारी रोज निभाती है,
उसपर से गुजरने वाली
ट्रेन को बिना जताए,
चुप्पी से उसका सारा भार
खुद पे उठाकर घिस जाती है,
कभी टूट कर उसके पुर्जे
इधर उधर हो जाएं तो मिकेनिक
आता है उसकी मरम्मत करके
जोड़ देता है उसे फिर से,
उसके नसीब में घिसना ही लिखा है।
और जिसके लिए वो यह सब करती है
उन्हें तो कभी फुरसत नहीं मिलती की
उनका हाल पूछे,
मगर औरत रेल की पटरी नहीं है,
ना ही वो जिम्मेदारीयों का लाईफ टाइम
पैकेज है,
वो कोई खिलौने का बंदर नहीं जिसे
चाबी भर भर कर आप आपका
मनोरंजन करे,
वो कुछ करती है तो उसमें उसकी
मर्ज़ी होती है,
अपने विचार,
अपनी जीवनशैली,
अपनी पसंद ना–पसंद,
सब छोड़कर वो आप पर जान लूटा देगी,
तो जब कभी वो टूट जाए तब बाहें
फैला कर उसे गले लगा लीजिए,
और याद रखियेगा,
औरत रेल की पटरी नहीं।
