हादसे
हादसे
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पिछले रोज़ कुछ हज़ार लोग मारे गए,
कल को कुछ हज़ार और मर जाएंगे,
हम अख़बार पढ़ते बातें करते,
फिर अपने काम को जाएंगे।
कभी हमारी तस्वीर उस
अख़बार में होगी,
जैसे कुछ हज़ारों की आती है हर दिन,
उन्हें शायद कोई देखे, या देख ना पाएं,
फिर वो भी अपने काम को जाएं।
यही तो है ना जिसे सच कहा गया है,
और इससे बेहतर सच क्या होगा?
जो अख़बार बेच रहा है हज़ारों के घर में,
उसका भी चेहरा इक दिन अख़बार में होगा।
ये जो ज़िस्त का वहम–ओ–गुमान लिए घूमते है,
अपने मन में फ़िक्र–ए–ज़िस्त लिए घूमते है,
घूमते घूमते घूमते घूमते,
एक रोज़ गुम हो जाते है।
ज़िस्त – life