छत्तीस साल महीना चार !
छत्तीस साल महीना चार !
छतीस साल महीना चार
थका ना तन - मन पड़ी ना रार
पारदर्शिता मानी कांच
चाओ तो बैठा लो जांच
जीवन में डरना या मरना
नही कभी अरमान
शुरू किया था अपनी बारी
लेकर के हरिनाम
मुझको मिला जो विष का प्याला
उसे पिया हूँ समझ मैं हाला
बिच्छू अजगर सांप है पाला
हाथ में चाकू कंठ में माला
हुआ रिटायर मान-शान से
थका न हारा कभी काम से
अभी तो कितनी मंजिल मक़सद
पूरी करनी इसी धाम से।