STORYMIRROR

Bhavna Thaker

Drama

3  

Bhavna Thaker

Drama

छाँव को बचा लो

छाँव को बचा लो

1 min
220

दफ़नाते चले जा रहे हो

कांक्रीट के कहर के नीचे 

में माँ हूँ तुम कहते हो जिसको 

आधार हूँ तेरे अस्तित्व का


काट काट कर मत छाँटो

मैं रो-रोकर पुकारुं 

मुझे जमीं से मत उखाड़ो

धूप तुझे जब लगती है


है हाज़िर ठंडी छाँव मेरी 

छलनी होता सीना है

कुल्हाड़ी से अब मत मारो

बादल से पूछो जाकर


बूँदों ने मुझको पाला है

हर मौसम में सींचा हमको,

मिट्टी-करकट झाड़ा है

मुझे जमीं से मत उखाड़ो।


इस धरा की सुंदर छाया हूँ 

हम पेड़ों से बनी हुई है

मधुर-मधुर ये मंद हवाएं,

अमृत बन के चली हुई हैं


मुझसे से नाता है जीवों का,

जो धरा पर जन्मा है 

उन सबका हमीं से रिश्ता है

मुझसे ही सब प्राणी का


अमृत का रसपान है

तुलसी से लेकर पीपल तक

हर घर में मेरा राज है

मुझसे बनती औषधि तब


तुम सबकी पनपती जान है

फल-फूल का है मेला लगता 

मंडी ओर बाजार में 

हमीं से सुंदर जीवन मिलता


खाने ओर खिलाने से

अगर जमीं पर नहीं रहे हम,

जीना दूभर हो जाएगा

त्राहि-त्राहि पुकारोगे


हाहाकार भी मच जाएगा

कर लो कोशिश मिलकर

बाल-बाल मुझे बचाने की

हाथ से हाथ मिलाकर

रक्षा करो अपनी ही साँसों की।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama