चेहरे का असर
चेहरे का असर


सोचते सोचते मैं ये सोच बैठा,
के ये चाँद एक होकर भी सबका कैसे ?
एक होकर भी लगे सबको प्यारा कैसे ?
तब जाना... तब जाना की...
रात की तनहाई में जब याद किसीकी आती है,
'उसकी' सूरत तब उस चाँद में नज़र आती है।
फिर सोचा... फिर सोचा की...
ना तो अब रात है, ना तो तनहाई का आलम,
फिर भी इस दिल को चाँद का एहसास क्यों हो रहा है ?
लगता है.... लगता है की शायद...
'उसके' चेहरे का असर इस वक़्त यारों मुझपर हो रहा है।