बस तेरी ही बाँहों में
बस तेरी ही बाँहों में
बस तेरी ही बाँहों में,
मानो सादिया गुजारी मैंने,
तेरी बाहों में बीते एक पल में,
सुलझ गयी उलझने सारी,
तेरी इश्क़ ने दिए एक हल ने,
क्यों ना समझ पायी तू,
क्यों ना समझा पायी,
अपने रिश्ते की डोरी को,
तू क्यों ना सुलझा पायी।
कई बाते हुई ,
कुछ आम हुई,
कुछ ख़ास हुई,
कुछ तो हकीकत थी,
कुछ तो बस अहसास हुई।
एक दौर सा गुजरा,
बीते कल में मगर,
ना जाने ये ज़िन्दगी क्यों,
ऐसे ही बदहवास हुई।
कोई पूछा करे के ये क्या हो गया ?
कोई समझा करे के ये क्यों हो गया?
गुफ्तगू में चली थी बाते अपनी,
फिर भी शोर ये कैसा,
ना जाने क्यों हो गया ?
तुम कहती हो की हदें पार ना करे,
कोई ये तो बताये की,
क्या ठीक से प्यार भी ना करे ?
समज़ता हु मैं सारी उलझने तेरी,
बस जिया जानने से डरता है।
कही फिर से ना खो दू तुम्हे ,
दिल बस इसी बात को मानने से डरता है,
क्या मोहब्बत में तडपना गुरुर है,
क्या किसी को चाहा तो बिछड़ना जरूर है ?
शायद हम मिले या ना मिले फिर कभी,
क्यों दर्द देना इस बेदर्द ज़माने का दस्तूर है ?
तड़पते दिल को, मचलती रूह को,
क्यों लगता है तड़पन नहीं पर गुरुर है।
कहासे लाऊ हुनर मैं उसे मानने का,
कोई जवाब नहीं था उसके रूठ जाने का,
मोहोब्बत में सजा मुझे ही मिलनी थी,
क्योकि कसूर मेरा ही तो था,
उनसे दिल लगाने का।
बड़ा आम इंसान हु मैं,
इतने हादसे ना सह पाउँगा,
दिल में ही दबे रहेंगे जज़्बात सरे,
कभी होटों से ना कह पाउँगा।
वो इबादत के किस्से अपने,
मशहूर ना हुए तो क्या हुआ ?
पर क़यामत के दिन तक भला,
तू ही बता, कैसे तनहा रह पाउँगा ?
मौत से पहले भी एक मौत होती है,
जो मेरे नसीब में आयी है,
जरा देखो तो तुम किसीसे जुड़ा होकर जरा,
कल रात मैंने अपने दिल से भी रिश्ता तोड़ दिया,
पगला तुझे भूल जाने की सलाह जो दे रहा था।
बस तेरी ही बाँहों में,
मानो सादिया गुजारी मैंने,
तेरी बाहों में बीते एक पल में,
सुलझ गयी उलझने सारी,
तेरी इश्क़ ने दिए एक हल ने।
क्यों ना समझ पायी तू,
क्यों ना समझा पायी ?
अपने रिश्ते की डोरी को,
तू क्यों ना सुलझा पायी ?
कई बाते हुई ,
कुछ आम हुई, कुछ ख़ास हुई,
कुछ तो हकीकत थी,
कुछ तो बस अहसास हुई।
एक दौर सा गुजरा,
बीते कल में मगर,
ना जाने ये ज़िन्दगी क्यों,
ऐसे ही बदहवास हुई।
कोई पूछा करे के ये क्या हो गया,
कोई समझा करे के ये क्यों हो गया,
गुफ्तगू में चली थी बाते अपनी,
फिर भी शोर ये कैसा,
ना जाने क्यों हो गया ?
पूछा था हाल बड़ी मुद्दतों के बाद मुझे,
कुछ तो गया आँखों में,
कहकर खुद ही रो पड़े,
दिल खोल देते ग़ालिब हम,
बस तुम्हे अपना जानकर।
वैसे भी अपनी ज़िंदगी के,
राज़ ही कितने है,
जिन्हे खोल देते तेरे सामने
खुली किताब की तरह मानकर।