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Madhu Gupta "अपराजिता"

Romance Fantasy

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Romance Fantasy

चाय की प्याली (प्रेम)

चाय की प्याली (प्रेम)

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जब - जब देखूं चाय की प्याली, यादें ताज़ा हो जाती हैं l

आधी तेरी आधी मेरी, क्या ख़ूब चाय की प्याली थी ll


वह कॉलेज की कैंटीन में, क्या खूब मजे उड़ाते थे l

बैठकर घंटों - घंटों हम, आधा कप को कब जा कर खाली कर पाते थे ll 


वो कैंटीन का बेटर भी, इस बात पर हम से नाराज़ हो जाता था ll


मन ही मन वह हमको जाने, कितना कोसा करता था l

हमको इस बात की कहां तनिक भी परवाह रहती थी ll


आंखों में आंखें डाले हम बस घंटों बातें करते थे l

सुध नहीं रहती थी हमको, बस यूं ही इक दूजे में खोए रहते थे ll


जब खींचकर दोस्त हाथ हमारा, बाहर हम को ले जाते थे l

और बतलाते थे कि हमने, क्लास दो मिस कर डाले हैं ll


तब जाकर हम होश में आते, और फ़िर हम मन ही मन पछताते थे l

उस चाय के प्यालों में हमनें, यादों की कितनी मीठी मिश्री घोली थी ll


चाय तो एक बहाना था, संग तेरे समय बिताना था l

बीत गया वह वक्त पुराना, फ़िर भी यादें आज भी ताज़ा हैं ll


जब भी छूटी प्याले को, और होठों तक ले जाती हूँ l

ऐसा लगता है मुझको, जैसे पास मेरे तू बैठा है ll


देख रहा है मुझको जैसे, आंखों के तू कोरो से l

जिन आंखों में अब कोई, दूजा चेहरा रहता है ll


रहना उसके साथ हमेशा, मेरा नाम न लेना तू l

उसका और अपना जीवन, सदा सजाएं रखना तू ll


और हर दिन नहीं यादों से, चाय का प्याला खाली करना तू l

जीना पूरे तन मन से, अपने इस प्यारे रिश्ते को तू ll



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