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राजेश "बनारसी बाबू"

Romance Classics

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राजेश "बनारसी बाबू"

Romance Classics

*चाय और तुम

*चाय और तुम

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पहले डेट की बात थी,

वो रोमेंटिक सी रात थी।

वो आषाढ़ के वो दिन थे,

हम भी कुछ ना कम थे।


बिजली कड़की थी

 बादल भी गरजे थे,

बारिश की रात थी,

वो अकेले पास थी।


दिल धड़क रहा था

मेघ बरस रहा था

सुरमई हवा चली 

तन को भिगो रही।


सास तेज हो गए,

हम भी कहा खो गए।

यादव चाचा के चाय के दुकान पे,

उनके संग हम हो गए।


दांत कट-कटा रही,

वो भी घबरा रही ।

बारिश की रात में 

हम भी चाय पे खो गए।


सनसनाती हवा चली

 तन को भीगो रही,

चाय के बहाने मैं 

उसके हाथ को छू रही।


चाय तो बहाना था,

उनसे मिलने जो आना था

चाय के सिप-सिप से आवाज 

मन के बहका रही,

यादव चाचा की खिस-खिसाहट

मन को सुलगा गई,

इस रोमेंटिक रात में,

चाय पे चाय खाली हो रही।


पहले चाय के डेट पे,

बारिश खूब हो रही।

बरसती हुई बारिश 

मन को भीगो रही,

उनकी हाथ की छुअन से,

मैं आज मगन हो रही।

चाय के बहाने मैं

भी उनको छू रही।


बात पे बात हो रहे, 

चाय क्यू खत्म हो रहे ?

चाय कम पड़ रही,

 बात खत्म न हो रही।

बिजली कड़कने लगी,

पावर कैसे कट हुई ?

अंधेरा छाने लगी 

मैं भी डरने लगी,

सन्नाहाटो के बीच 

जैसे कुछ छुअन हुई,

 तभी किसी के चुम्बन से

 होठ की चुभन हुई।

मैं भी सरमा गई 

जाने क्यू घबरा गई?

उनकी मजबूत पकड़ से

 ना जाने क्यू बहक गई?

चाय के छुअन से 

फिर हल्की सी जलन हुई।


होठ कपकपा गए 

हम दोनो भी घबरा गए।

यादव चाचा सामने 

बत्तीसी दिखा गए।

जल्दी से फिर वो चाय लेके

 फिर जल्दी से आ गए।

चाय के हसीन वो पल 

आज फिर से छा गए।


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