STORYMIRROR

Soutrik Ghoshal

Romance

4  

Soutrik Ghoshal

Romance

चांदनी रात

चांदनी रात

1 min
403

इस चांदनी रात की कुछ अलग ही बात है।


बेसब्री से कटते हैं ये दिन,

कैसी बेचैनी है इन हवाओं में?

तड़प रहा है अंतर्मन मेरा,

कैसे बादल घिरें इन फिजाओं में?

पर इस चांद को देखते ही भूल जाता हूं सबकुछ

आती मुझे किसी की याद है।

इस चांदनी रात की कुछ अलग ही बात है।


उसकी मुस्कराहट में कुछ जादू था,

उसे देखते ही हर जाते थे अतीत के घाव।

उसकी आंखों में एक अपनेपन का था एहसास

जिससे सूरज में तपते हुए मेरे दिल को मिलती थी प्यार की छांव।

ऐसा लगता है कि, न होकर भी, वो मेरे ही साथ है,

इस चांदनी रात की कुछ अलग ही बात है।


अब भटकता हूं अनजान राहों पर,

न दिखता है रास्ता, न दिखती है मंज़िल।

उसके बिना न लगता है मन मेरा,

एकतरफा प्यार होता है बेहद मुश्किल।

मगर जितनी भी अंधेरी रात हो, ऊपर चमकता वहीं चांद है।

इस चांदनी रात की कुछ अलग ही बात है।


हां, उस चांद का दीवाना है हर कोई,

हर किसी को उसका बन्ना है।

मैं भी हूं कुछ वैसा ही पागल,

उसको पाना मेरी आखरी तमन्ना है।

अब क्या करूं, मन में बार बार आते उसके खयालात हैं,

इस चांदनी रात की कुछ अलग ही बात है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance