चाँद
चाँद


आसमान का चाँद भी कुछ मुझसे नाराज है
मेरा चाँद जिस दिन से जब से मेरे साथ है
जब से निकलने लगा है मेरा चाँद सँवर के
आसमान का चाँद अपने दाग से परेशान है।
छु ना पाए हम कभी आसमान के चाँद को
और छूने से डरते हैं हम अपने ही चाँद को
यह कैसी हो गई है अब हालत मेरे दिल की
वो पास होकर दूर और दूर हो कर भी पास है।
आज तक तो जिए हैं हम अंधरो के सायों में
अब जा के आये हैं हम चांदनी की बाँहों में
दोनों चाँद ही जलते हैं देख कर एक दूजे को
मगर हम क्या करे दोनों ही से मेरी पहचान है।
रे आसमान के चाँद तेरे साथ तो लाखो तारे हैं
हमारे पास और क्या है बस बो ही तो हमारे हैं
कैसा है यह रिश्ता उन दोनों चांदों के बीच में
दोनों का ही मेरी जिंदगी पर कुछ न कुछ एहसान है।