चांद की कश्ती
चांद की कश्ती
सुबह आई नहीं अब तलक
चांद की कश्ती, तूफानों में उलझी हुई लगती है।
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रात जागी नहीं अब तलक।
चांद की कश्ती,
भंवर में उलझ गई लगती है I
सुबह आई नहीं अब तलक
चांद की कश्ती, तूफानों में उलझी हुई लगती है।
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रात जागी नहीं अब तलक।
चांद की कश्ती,
भंवर में उलझ गई लगती है I