सुबह आई नहीं अब तलक चांद की कश्ती, तूफानों में उलझी हुई लगती है। सुबह आई नहीं अब तलक चांद की कश्ती, तूफानों में उलझी हुई लगती है।
आओ चले उस कश्ती मे जिसे कोई किनारा न मिले। आओ चले उस कश्ती मे जिसे कोई किनारा न मिले।