चाँद हुश्न
चाँद हुश्न
वो कमतर लिबास रखते हैं
फिर हुश्न भी बेहिसाब रखते हैं।
कहीं कोई अदा जाया न हो
हर हँसी का हिसाब रखते हैं।
यूँ ही नहीं हैं तारीफे-काबिल
चाँद-तारों का रूबाब रखते हैं।
किसकी मिशाल दी जाए उनको
हर चाल अपनी नायाब रखते हैं।
पढ़ने वाले पढ़िए कभी गौर से
वो खुद में एक किताब रखते हैं।