चाहती हूं..
चाहती हूं..
लिखी हैं गज़लें जितनी भी तेरे लिए
सब सुनाना चाहती हूं
कितना चाहती हूं तुमको
यह बताना चाहती हूं
भूल इस दुनिया के झमेलों को
बस तेरी आंखों में खो जाना चाहती हूं
तुझे गले से लगाना चाहती हूं
खुली किताब की तरह सब बताना चाहती हूं
कुछ भी न तुमसे छुपाना चाहती हूं
दुनिया की हर ऊंचाई संग तेरे छुहना चाहती हूं
सर रख तेरी गोद में
बेफिक्र सोना चाहती हूं
मैं तेरी होना चाहती हूं
सिर्फ तेरी होना चाहती हूं।