मां...
मां...
जब भी कभी मुझको बुखार आता है
मां खुद ब खुद तेरे नंबर पे touch हो जाता है
बिन बोले तू कैसे मेरा हाल जान लेती है
कैसे है तबीयत लाडो की
बस एक आवाज़ से पहचान लेती है
फिर न जाने तू कितने ही बार कॉल लगाती है
ज्यादा ठंडा पानी मत पिया कर, धूप में मत घुमा कर
सब समझाती है
कभी डॉक्टर, कभी अध्यापक तो कभी मेरा अलार्म बन जाती है
दवाई वक्त पे ली या नहीं
पूरी सार लेती है
तेरी फिकर और दुयायों के सामने तो मां
बीमारी भी मान हार लेती है
नींद को मुश्किल से लाती हूं
तेरी गोद नहीं मिलती , सर रखने को
तो बस सिरहाने को गले लगा के सो जाती हूं
और हां
सपनों में भी मां मैं बस तुमको ही पाती हूं
दिखती हैं लोगों को लाख बुराइयां मुझमें
फिर क्यूं तुमको मैं इतनी भाती हूं
सूरत तो मिल गई तेरे जैसी
मैं सीरत भी मां तेरे जैसी बनाना चाहती हूं....