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Pushp Lata Sharma

Tragedy

4  

Pushp Lata Sharma

Tragedy

बुढ़ापा

बुढ़ापा

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202


वक्त की उँगली पकड़ कर देख ली अनगिन व्यथायें 

झुर्रियां लिखने लगी हैंआप बीती हर कथायें


हो गयी बूढी जवानी जिन्दगी भी लड़खड़ाती सांस चलती है

थकी सी राह अंतिम सी दिखाती सांवले रँग

रूप पर हैं श्वेत लट की व्यंजनायें 


ज्योत मध्यम है दृगों की दिख रहा धुँधला जमाना 

राम की माला करों में भक्ति का गाये तराना 

नव कली नव पर्ण हँसते द्वार सुन वैदिक ऋचायें 


आस का विश्वास टूटा धीर मन कैसे दिलायें 

जो बची है उम्र अपनी वक्त गिन गिन कर बितायें 

कुछ हँसायें कुछ रुलायें जिन्दगी सबकी सजायें।


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