Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

चेहरे

चेहरे

1 min
6.9K


असली चेहरे के पिछे लोग

चेहरा नकली लगाते हैं

अंदर से नफरत भरी होती

बाहर से लोग हंसते है

ज़ख्मों को मवाद बनाते है ...


ज़ख्मों में नमक लगाते है

हाय तौबा मचाते हैं ,

तलाश कैसे करें इन्सानियत की

लोग कितने चेहरे पे चेहरे लगाते हैं

भूल जाते है कभी कालीख

खुद के चेहरे पर भी लग सकती है...


जमाना कहता है गली कूंचों में

फूल नहीं खिलते कभी

लेकिन तंग गलियों में भी सूरज

कभी महफिलें सजा ही लेता है,

धूप छांव में फूल खिल ही जाते है...


यहाँ वहां आग ही आग

नजर दिखाई देती है

लेकिन कभी पेट की आग

ना दिखी किसी को

आग लगाकर मुंडेर पे बैठ जाने से

किसी के पेट की भूख मिटती नहीं है....



Rate this content
Log in