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Neetu Singh Chauhan

Tragedy

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Neetu Singh Chauhan

Tragedy

मैं शमा सी पिघलती रही

मैं शमा सी पिघलती रही

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रात भर मैं शमा सी पिघलती रही

दे उजाला तमों को निगलती रही।


तो कभी पुष्प बनकर यहाँ से वहाँ

राह पर भारती के बिखरती रही।


नारियाँ हैं नहीं आज सुरक्षित यहाँ

देखकर दुर्दशा मैं बिलखती रही।


वासना से घिरे लोग देखो जरा

बच्चियां भी घरों में सिसकती रही।


लाड़ से पालना था कि दुख से बचा

देख अपने डरी सी सिमटती रही।


सत्य से भी भली ये बुराई लगी

प्रेम-रिश्ते सभी मैं बिसरती रही।


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