बुनियाद
बुनियाद
आओ बातें करें बुनियाद की
उन बीते दिन और रात की
जब होती थी रिश्तों की सिंकाई
रिश्तों की सीलन की सफ़ाई
अब हर बात विपरीत है
रिश्ते अब ठिठुरते हैं
कंबल को तरसते हैं
माना आए मोड़ कई
कभी मनचाहे कभी अनचाहे
रिश्तों की पहचान लेकिन करा गए
रह-रहकर धूल भी उड़ा गए
अपने तो अपने होते हैं
इस एहसास को गुदगुदा गए।
