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Manisha Wandhare

Abstract

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Manisha Wandhare

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बुझना नहीं है...

बुझना नहीं है...

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अब परिस्थिति हो कितनी भी विकट,

अपने ध्येय से हटना नहीं है,

चाहे अपने ही हो राहो में बन के रुकावटें,

खुद को विचलित करना नहीं है ...

तू तूफान है जो पहाड़ों से टकरायेगा,

झुमके आगे ही बहता जायेगा,

लाख कोई मुड़ा के देखे राह को,

अपने ध्येय से मुड़ना नहीं है ...

रुक गये थे कभी कदम बीच राह में,

अब वही काँटों से लहूलुहान होना नहीं है,

थका के देखेगा जमाना,

झुटा प्यार दिखा के,

बातों में उनके आना नहीं है ...

वक्त आया बीत गया जो उनका था,

अब वक्त अपना लाना है,

जो रोकना चाहे कदम तुम्हारे,

वो जानते नहीं है,

लपटे हो तुम आग की,

कसूर उनका नहीं जलना

लाजमी है...

कभी जमाना आया था,

संस्कारों की बात करने हमसे

आज जवाब देते है हम,

भरोसा तुम पे है लड़खड़ाओगे नहीं कभी,

जीत ऐसी होगी तुम्हारी वो भी देखेंगे,

संस्कार इसे कहते है,

ये फिर तुम्हें बताना है ...

पाखंडी इस दुनिया में,

खेतों में अंधविश्वास का हल ना चलाना,

बेरोजगारी डसे तुझे नागिन की तरह,

सैनिक है तू डटकर सामना है करना,

किसान का विश्वास भर ले भुजाओं में,

मौसम साथ दे ना दे,

उम्मीदों का दामन छोड़ना नहीं है ...

इस दुनिया की भागमभाग में,

खुद को खोना नहीं है,

सूरज हो तुम दुनिया के लिये,

अंगारों की तरह बुझना नहीं है ...



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