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Dr. Vijay laxmi

Abstract

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Dr. Vijay laxmi

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बसन्त ऋतु (शहरी)

बसन्त ऋतु (शहरी)

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फाग राग अलबेला कहुं न पड़े सुनाई

सखी बसन्त मदन ऋतु है कहां आई??


न दिखे खेत पीले सरसों न नीली अलसी ।

कहां सखी कोकिल कूके आंबौर हुलसी ।

सूरजमुखी के गेरुए संत गेंदा की तरुणाई ।

मधुरस महुआ को छू पवन करे अगुआई ।


फाग राग अलबेला कहुं न पड़े सुनाई 

सखी बसन्त मदन ऋतु कहां है आई??


अमलतास के पीत झुमके टेसू की पहुनाई ।

बजी न मधुकर चुम्बन की पुष्प शहनाई ।

कंह पराग रस झरे कंदब मादकता छाई ।

दुशाला ओढ़े सिट्टे, भुट्टे कहीं पड़े दिखाई??


फाग राग अलबेला कहुं न पड़े सुनाई

 सखी बसन्त मदन ऋतु कहां है आई??


कंक्रीट के परखंडे देख मदन है सकुचाई ।

रूठे कपोत, शुक, सारिका ,खंजन, चकई ।

कहां सखी अब प्रेमभरे देवर, नंद भौजाई ।

कौन रहा घोट भोले की भांग चढ़ी ठंडाई ।


फाग राग अलबेला कहुं न पड़े सुनाई 

सखी बसन्त मदन ऋतु कहां है आई??

    


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