बसंत, मोहब्बत का पैगाम।
बसंत, मोहब्बत का पैगाम।
पहले सृष्टि होती थी शांत,
बृह्मा हुए परेशान,
उन्होंने लगाई गुहार,
मां दुर्गा के तेज से,
मां सरस्वती आई,
उसने छेड़ा,
मधुर संगीत,
हर किसी को मिली ध्वनि।
नदियों में आया कल-कल का शोर,
पक्षी लगे चहचहाने,
हवा में पैदा हुई सरसराहट,
भंवरे लगे गुनगुनाने,
फिर कवियों ने की सुंदर रचनाएं,
संगीतमय माहौल का हुआ उदय।
खेतों में सरसों के फूलों का खिलना,
हवा के साथ,
धीमे-धीमे झूमना,
जैसे कोई सुंदर नार,
यौवन में मदहोश,
किए पीला श्रृंगार,
नाच रही दिन रात,
भंवरे के गुनगान पे,
यहीं से होती,
प्रेमरस की शुरुआत।

