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Dr. Madhukar Rao Larokar

Drama

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Dr. Madhukar Rao Larokar

Drama

बसाता घोंसला

बसाता घोंसला

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जब भोर में, सुनता हूँ

पक्षियों का मनमोहक कलरव।

मन में उठती है, उमंग

तन-मन होता है पावन।


चारों तरफ है,अंधकार

विवशता के, धुंए का अंबार।

दिल में उठती है कसक

मैं भी पक्षी होता बारंबार।


नभ में करता,

स्वच्छंद विचरण।

बसाता घोंसला

जोड़कर तिनका-तिनका

सुख दुख में रहता

सदा साथ पक्षियों के।


धरा और घर में

कितनी है समानता।

एक प्यासी है

सावन की फुहारों की।

एक इंतजार कर रही किसी

हँसी, प्यार, खुशी की।


सुखी है पक्षी,

न उनमें

उद्वेग है ना आवेश।

इंसा तो है बेचारा

जिंदगी में है घुटन और

अंधकार का है समावेश।


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