बस थोड़ा और इंतजार
बस थोड़ा और इंतजार
सूनी पड़ी हैं सड़कें
ख़ाली पड़े हैं मेले
ख़ाली पड़े है बगीचे
ख़ाली पड़ी हैं दफ्तरें
न लोगों की चहचहाहट है
न दुकानों में जोश
न बाजारों में उत्साह है
न दुनिया का किसीको होश
कहां चली पड़ी है दुनिया
कहां चल पड़ा है इंसान
कहां गई बच्चों की मुस्कुराहट
कहां गई लोगों की मुस्कान
वक़्त का न जाने कैसा चक्कर है
मुश्किल दौर से गुज़र जाएंगे ज़रूर
भगवान पर भरोसा रख, दिल में हौसला
हम इससे भी पार हो जाएंगे, मेरे ऐ हुज़ूर
लौट आएगा सूरज
लौट आएगी खिलखिलाहट
लौट आएगी मस्ती
लौट आएगी चाहत
बस थोड़ा और इंतजार है
फिर बंधनों से निकलकर घूमेंगे हम
लौट आएगी खुशियों भरी ज़िंदगी
भूल जाएंगे यह सारे गम।