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Prasanna Koppar

Romance

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Prasanna Koppar

Romance

कुछ पता नहीं चलता

कुछ पता नहीं चलता

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चाहे लम्बी हो दूरियां

तुम्हारी धड़कनों को मै अभी भी महसूस कर सकता हूं

फासले बहुत हैं लेकिन

मैं तुम्हारी हर खुशी .. हर ग़म.. महसूस कर सकता हूं


वो तुम्हारी बातें.. वो तुम्हारी हसीं

छलकती रहती हैं इन आंखों में

जैसे ही फोन पर तुम्हारी आवाज़ सुनता हूं

एक लहर सी दौड़ जाती है इन सांसों में


यादों में तुम्हारी गुज़र जाती हैं लम्हें

दिन.. रात.. वक़्त का कुछ पता नहीं चलता

यादों में ही भटकता रहता हूं

कब खा लिया.. कब सो लिया.. कुछ पता नहीं चलता


यादों में उन लम्हों की.. 

दिन.. हफ्ता.. गुज़र जाता है 

कब आया इतवार.. कब आया शनिवार

कुछ पता नहीं चलता

निकल जाता हूं जब घर से

कब घूम के आया .. कब घर पहुंच गया.. कुछ पता नहीं चलता


गुज़र जाएंगे ये लम्हें .. कम होंगे फासले

देखते ही देखते माहौल बदल जाता है.. कुछ पता नहीं चलता

कैसे बताऊं मैं तुमको

धीरे धीरे कैसे कोई दिल के क़रीब हो जाता है.. कुछ पता नहीं चलता।


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