बस सफर ही सफर हो तुम।
बस सफर ही सफर हो तुम।
गीत- तेरे इश्क में, हा !तेरे इश्क में
गायिका-रेखा भारद्वाज
हां मेरे दिल ने,
हां मेरे दिल ने,
राहें वो दिखाई
जिन में सफर हो तुम ,
हम तय करते रहे ,
वह सफर हो तुम ,
मिली नहीं मंजिल कभी ,
बस सफर ही सफर हो तुम।
सफर यह गुनगुना
है गर्म पानी से बना
मौजों से भरा
छू लूँ इसे जो मैं
पानी का यह बुलबुला
हाथों से छूट गया
टूटा और मन गीला हुआ ,
पर रीता रहा मन मेरा
रीता रहा मन मेरा ।
गीले मन पर पड़ती रही धूप
गर्म हवाएं गुजरती रहीं
कभी हालात , कभी वक्त से
मै पूछती रही
पता तुम्हारा,
पता तो कभी मिलता नहीं
मिला बस सफर ये अधूरा ।
सफर ये अधूरा ।
कभी मौसमों ने मुझे
ठहर कर पुकारा
थी बारिश की बूंदें कभी,
कभी बहारों ने राह रोका,
पर रुका ना ये सफर मेरा
जाऊ भी मैं कैसे
है हाथों में हाथ तुम्हारा
बस नसीब नहीं साथ तुम्हारा ।
गई बहारें मुझे छोड़कर
मैं रह गई उसी मोड़ पर
जीती रही मैं उस पल को
बूंद बूंद मैं पीती रही
हुआ ना गीला गला मेरा
है कैसा ये इश्क तेरा ?
बस राहें ही राहें है
सफर ही सफर है
कहां जाके ठहरेगा ये
मंजिल की किसे खबर है
मंजिल की किसे खबर है ?