बरखा रानी
बरखा रानी
अमृत बनकर फिर से बरसो
झम- झम बरसो बरखा रानी।
अपना रूप मनोहर लेकर
और सुघड़ बन जाओ रानी।
बरसो तन पर, मन पर बरसो
खेतों-खलिहानों में बरसो।
ताल-तलैया छूट न जाए
बियाबान सरसाओ रानी।
सौंधी माटी फिर महकाओ
रिमझिम बूँदों से नहलाओ।
पय सम बारिश के कतरों से
कंठों को सहलाओ रानी।
जीव जगत भया मरणासन्न
तुम बिन नहीं खाद्य उत्पन्न।
जीवन की दाता हो तुम ही
रुठ न हमसे जाओ रानी।
हम सम नासमझों से तुम
क्रुद्ध कभी न होना रानी।
वसुधा की श्यामलता तुम हो
सुख समृद्धि लाओ रानी।