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Rajit ram Ranjan

Abstract

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Rajit ram Ranjan

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बढ़ रही महँगाई !

बढ़ रही महँगाई !

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तू ही बता दे,

ऐ मेरे मौला, 

ये कैसी रूत,  

आई है


चारों तरफ, 

तबाही ही तबाही है

अपने ही घर में,

ये किसने आग, 

लगाई है


बद से बद्तर, 

हालत में भी, 

सिर्फ बढ़ रही, 

महँगाई है


ऐसा लग रहा है जैसे

अपनी जान, 

किसी औऱ के

नाम कि मेहंदी रचाई है


इन ख़ुश्क आँखों में, 

मानो समंदर सी

लहर आई है

तू ही बता दे,

ऐ मेरे मौला, 

ये कैसी रूत, 

आई है !


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