बर्बाद इश्क की कोई उम्र नहीं होती
बर्बाद इश्क की कोई उम्र नहीं होती
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जलते चेहरों से खिदमत करने का, अंजाम बुरा होता है,
हाँ उनकी महफ़िल में अपना नाम चर्च ~ए ~ आम होता है।
यूँ तो कभी अपनी भी किस्मत पे, हम दम भरते थे,
आज उसी किस्मत का फिर से, इम्तिहान होता है।
बर्बाद इश्क की कोई उम्र नहीं होती,
उनके टूटे दिल की हर तस्वीर बुरी होती,
वो चेहरे से भला मुस्कुरा भी दें अगर,
उस बुझती चिंगारी की कोई हवा नहीं होती।
नम आँखे उनसे उलझने की दुआ फिर करें,
उनकी नज़र में अब कोई दुआ कुबूल नहीं होती।
एक भूल की थी कभी उनको ठुकरा के हमने,
आज इस तरह से मिलके ये देह भी खूब रोती।
वो मासूम सा चेहरा अब इतना बदल गया,
कि हमारे हँसने पर भी उनकी आँखों से गिरते मोती।
बर्बाद इश्क की कोई उम्र नहीं होती,
उनके टूटे दिल की हर तस्वीर बुरी होती।