बोझ
बोझ
बचपन से ढो रहे हैं बोझ ,
पहले था किताबों का बस्ता ,
फिर आया काम का रास्ता ,
बाद चढ़ा जिम्मेदारी का बस्ता ।
इंसान नही हम कुली हैं ,
बस बोझ ढोए जा रहे ,
जिंदगी के हर मोड़ पर ,
बोझा बढ़ाए जा रहे हैं,।
ना जाने कब मुक्त होंगे,
इस बोझ भरे जीवन से ,
कभी हम बोझ थे लोगों पर ,
अब कई बोझ हैं हम पर ,.