बोझ
बोझ
उम्मीद किरणों की तलाश में है
हमसफर बनी बूढ़ी आंख जो है
कितने और बचे हैं बोझ अपनों का,
झुकती है "बोझ " से पर फरियाद भी है !
बोझ बनी है पीठ पर लद्दी
घास का बोझा .......
लेकिन,
लद्दी बेटे की प्यार सी है
दर्द आज सब भुला रही यह कमल
हां ! औलाद वाली उम्मीद साथ जो है
शायद हँसती गंवा रही
जिंदगी की सांझ को
इसलिए "मां "वह है !
दूर से देखती एक नजर टकाटक,
लगता है खड़ा वह कलयुगी औलाद ही है !!