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Mayank Kumar

Abstract

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Mayank Kumar

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बोझ

बोझ

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उम्मीद किरणों की तलाश में है

हमसफर बनी बूढ़ी आंख जो है

कितने और बचे हैं बोझ अपनों का,

झुकती है "बोझ " से पर फरियाद भी है !


बोझ बनी है पीठ पर लद्दी

घास का बोझा .......

लेकिन,

लद्दी बेटे की प्यार सी है

दर्द आज सब भुला रही यह कमल

हां ! औलाद वाली उम्मीद साथ जो है


शायद हँसती गंवा रही

जिंदगी की सांझ को

इसलिए "मां "वह है !

दूर से देखती एक नजर टकाटक,

लगता है खड़ा वह कलयुगी औलाद ही है !!


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