बनना होगा संवेदनशील
बनना होगा संवेदनशील
एक तरफ दिन भर मेहनत करके भी
रात के लिए खाना नहीं हो पाता
तो मज़बूरी में पानी पीकर
फुटपाथ में सोना पड़ता है
दूसरी तरफ आराम से बैठ कर
डाइनिंग टेबल में खाने वाले
भूख न होने पर
खाने को डस्टबिन में
फेंक डालते हैं
या डोमिनोस और जोमैटो
से मंगवाकर
मनमर्जी से खाते है
और अच्छा नहीं लगने पर
कचरे के डब्बे में फेंक देते हैं
एक तरफ कुछ खरीदने से पहले
हजार बार सोचना पड़ता है
कि कल क्या खाएंगे
आज रहने देते है
कभी किसी और दिन ले लेंगे
और वो दिन कभी नहीं आता
दूसरी तरफ मॉल में जा कर
तरह-तरह के कपड़े इस्तेमाल करना
सेल्समेन से ढंग से बात न करना
सामान को बर्बाद करना
खरीदने के नाम पर
कुछ नहीं खरीदना
महंगे होने की बात करना
या माँ-बाप को कहकर
चीजें मँगवाना
और पसंद न आने पर
न पहनना
पहनना भी हुआ तो
एक-दो बार पहन कर
फिर फेंक देना
ये सारी बातें
केंद्रित है गरीबी,
बेरोजगारी और भुखमरी पर
एक तरफ जिनके पास
कुछ भी नहीं है
तो दूसरी तरफ जिनके
पास कोई कमी नहीं पैसों की
एक पैसों की कद्र
करते है
और एक पैसों के ही
सब कुछ समझते है
जिन्हें किसी की कद्र
ही नहीं होती
भले ही उनकी
फटी जेब होती है
पर उसूल उनके
भी होते है
हम सबको बनना होगा
संवेदनशील
हर किसी के लिए
किसी को छोटा समझने
से बचना होगा
खुद को ही सर्वोत्तम
नहीं समझना चाहिए
जहाँ हो सके
दान कीजिए
किसी चीज की
बर्बादी मत कीजिए
अगर मन नहीं है तो
किसी और दे दीजिए
अगर भला नहीं कर सकते
तो बुरा भी मत कीजिए
जैसे अपने बारे में
सोचते है
वैसे दूसरों के बारे में
भी सोचिए
जैसे आपके बच्चे हैं
वैसे ही दूसरों के भी हैं
तो अच्छा कीजिए
और अपने बच्चों
को भी सिखाइए।